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Threat To Dollar Supermacy Might May Erode United States Stature As Global Political And Economic Power

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Threat To US Dollar Dominance: क्या दुनिया के सबसे ताकतकवर करेंसी अमेरिकी डॉलर ( US Dollar) का वर्चस्व खत्म होने वाला है? क्या डॉलर के जरिए होने वाले इंटरनेशनल ट्रेड को चुनौती मिलने वाली है? ये सवाल चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के रूस के दौरे के बाद से और प्रबल होता जा रहा है. रुस के राष्ट्रपति ब्लामिदीर पुतिन (Vladimir Putin) ने चीनी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देते हुए कहा कि रूस एशियाई, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ चीनी करेंसी यूआन (Yuan) में सेटलमेंट किए जाने के पक्ष में है.     

इस प्रयास के जरिए चीन और दुनिया के सबसे बड़े एनर्जी एक्सपोर्टर रूस, ग्लोबल फाइनैंशियल सिस्टम में डॉलर की धमक को खत्म करना चाहती है. और अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका के इतिहास में उसे लगने वाला ये सबसे बड़ा झटका होगा क्योंकि डॉलर को पूरी दुनिया के खिलाफ अपने सबसे बड़े हथियार रूप में अमेरिका इस्तेमाल करता आया है. दुनिया के 20 फीसदी आउटपुट यानि उत्पादन पर अमेरिका का कब्जा है. ग्लोबल सेंट्रल बैंकों में रखे 60 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर है हालांकि 20 साल पहले ये 70 फीसदी हुआ करता था. इंटरनेशनल ट्रेड भी डॉलर के जरिए ही किया जाता है. 

डॉलर अमेरिका को उसे वैश्विक राजनीति और आर्थिक पटल पर सबसे बड़ी ताकत प्रदान करता है. अमेरिका किसी भी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है और उस देश को आर्थिक रुप से दुनिया में अलग-थलग कर सकता है. अमेरिका के कानून जिसमें इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (International Emergency Economic Powers Act), ट्रेडिंग विथ एनमी एक्ट (Trading With the Enemy Act), और पैट्रिऑट एक्ट (Patriot Act) अमेरिका को पेमेंट सिस्टम को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की ताकत प्रदान करता है. अमेरिका पूरी दुनिया में करेंसी की सप्लाई को नियंत्रित करता है.  

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स्विफ्ट (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication) जो ग्लोबल मैसेजिंग पेमेंट सिस्टम है वो दुनिया के आर्थिक गतिविधि में अमेरिकी डॉलर के दबदबे को स्थापित करता है. चीन और रूस  स्विफ्ट के अलावा अलग से इंटरनेशनल पेमेंट सिस्टम तैयार करना चाहते हैं. रूस के यूक्रेन पर हमले और चीन और अमेरिका के बीच तनातनी के बाद ये मुद्दा और जोर पकड़ता जा रहा है और डॉलर को चुनौती देने की कोशिश की जा रही है. 

रूस और चीन के सेंट्रल बैंक अब डॉलर के रूप में कम विदेशी मुद्रा भंडार रखने लगे हैं और यूआन में लेन-देन कर रहे हैं. रूस और चीन अन्य देशों को भी ट्रेड के लिए यूआन को अपनाने के लिए मनाने में जुटे हैं. रूस और चीन के लगता है कि इसके जरिए अमेरिका और उसकी ताकतवर करेंसी डॉलर को सबसे बड़ी चुनौती दी जा सकती है और अमेरिका के आर्थिक ताकत पर चोट किया जा सकता है.   

सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने चीन को तेल बेचने पर करेंसी के तौर पर यूआन को स्वीकार करने की मंजूरी दे दी है. साथ ही कच्चे तेल के दामों का निर्धारण यूआन में भी करने का फैसला लिया है जो अब तक डॉलर में होता आया है. भारत ने भी डॉलर के अलावा दूसरे करेंसी का भुगतान कर रूस से कच्चा तेल खरीदा है. 

हालांकि डॉलर के इस वर्चस्व की कई ठोस वजहें हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था को ऐसी एक सिंगल करेंसी चाहिए जो स्थिर हो और आसानी से उपलब्ध हो. उस करेंसी के जरिए आप कभी भी लेन-देन कर सकें. करेंसी के वैल्यू को बाजार नियंत्रित करे ना कि कोई देश. यही डॉलर को सबसे अलग और खास बनाता है और यही वजह है कि चीनी यूआन के लिए डॉलर के वर्चस्व को चुनौती दे पाना इतना आसान भी नहीं होगा. 

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