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Sarla Thakral Death Anniversary First Indian Woman Pilot


Sarla Thakral Death Anniversary: सरला ठकराल (Sarla Thakral) ये वही नाम है जिसने पहली बार महिलाओं को असल में आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ना सिखाया था. सादगी ऐसी की देखकर नहीं लगता था कि सरला इतने बड़े सपने देख सकती थीं. हम बात कर रहे हैं विमान उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला की जिन्होंने साड़ी पहनकर कॉकपिट में एंट्री की थी. महज 21 साल की उम्र में उन्हें 1936 में एविएशन पायलट का लाइसेंस मिल गया था. 

सरला ने पहली बार साड़ी पहनकर उड़ान भरी और यह साबित कर दिया कि महिलाओं के लिए भी आसमान खुला है. सरला ठुकराल उस समय की युवा महिलाओं के लिए एक उदाहरण थीं जो ऊंची उड़ान भरने की ख्वाहिश रखती थीं. सिर्फ पायलट ही नहीं सरला एक उम्दा चित्रकार भी थीं. उनके पति भी एक एयरमिल पायलट रह चुके थे जिनकी वजह से उनको भी विमान उड़ाने की प्रेरणा मिली थी. उनका निधन 15 मार्च, 2008 को हुआ था. 

महज 16 साल की उम्र में हुई शादी 

सरला का जन्म दिल्ली ब्रिटिश भारत में 8 अगस्त 1914 को हुआ था. वह अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद आगे पढ़ने के लिए लाहौर, पाकिस्तान चली गईं थीं. जब वह केवल 16 साल की थीं तब उन्होंने एक एयरमेल पायलट पीडी शर्मा से शादी की. उनके पति शर्मा कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरने वाले एयरमेल पायलट का लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने सरला की उड़ने की इच्छा को पहचाना और उसे इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया.

सरला ने कैसे ली अपनी ट्रेनिंग

सरला ने एक ब्रिटिश दो सीटों वाले पर्यटक और जिप्सी मॉथ के रूप में पहचाने जाने वाले ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट से सीखना शुरू किया. उनमें सीखने की काफी ललक थी, इसलिए उन्होंने जल्दी ही अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली थी और इसके तुरंत बाद उन्हें उड़ान भरने के लिए मंजूरी दे दी गई थी. लाइसेंस के लिए उन्होंने 1,000 घंटे की उड़ान का समय पूरा किया. सरला ने 1936 में अपना लाइसेंस पाकर देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया. जब सरला ने अपनी पहली उड़ान भरी, तब वह न सिर्फ शादीशुदा थीं बल्कि उनकी चार साल की बेटी भी थी. उन्होंने ऐसे समय में इस सपने को पूरा किया जब विमानन केवल पुरुषों के लिए था. 

फ्लाइंग क्‍लब में पहली लड़की थीं सरला

सरला के लिए सबसे अच्छा ये था कि शादी जिस परिवार में हुई थी उस परिवार में 9 सदस्य थे और सभी पायलट थे. उनके पति ने ही उन्हें विमान उड़ाने की ट्रेनिंग लेने के लिए कहा था. उनके परिवार में सभी बेहद खुश थे कि वह पायलट बनने की तैयारी कर रही हैं. सरला की ट्रेनिंग ऐसे फ्लाइंग क्‍लब में हुई जहां उनसे पहले कभी कोई लड़की नहीं देखी गई थी. फ्लाइंग स्कूल के लिए भी यह एक अजीब स्थिति थी. हालांकि, लोगों को उन्हें देखने की आदत होती गई और वह ट्रेनिंग लेते रहीं. ट्रेनिंग से जुड़े हर सवाल का जवाब उनकी जुबान पर रहता था. महज आठ घंटे के अंदर ही सरला के ट्रेनर को उनपर विश्वास हो गया था कि वह बहुत जल्द एक पायलट बनने वाली हैं. 

पति की मौत के बाद टूटे सपने

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान सरला अपने ग्रुप बी लाइसेंस के लिए तैयारी कर रही थीं, ताकि वह प्रोफेशनली फ्लाइट उड़ा सकें. वर्ल्ड वॉर के कारण सिविलियन ट्रेनिंग को पूरी तरह से रोक दिया गया था. इसके बाद सरला के जीवन में एक और ऐसा मोड़ आया जिसने उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया. 24 साल की उम्र में ही उन्होंने एक प्लेन क्रैश में अपनी पति को खो दिया था और वह मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाई करने लाहौर लौट आईं. यहां उन्होंने बंगाल स्कूल ऑफ़ पेंटिंग में ट्रेनिंग ली और उन्हें ललित कला डिप्लोमा मिला. 

विभाजन के बाद आईं दिल्ली 

1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सरला ठकराल वापस भारत आ गईं. सरला और उनके बच्चे फिर एक नया जीवन शुरू करने के लिए दिल्ली चले गए. उन्होंने पेंटिंग करना, कपड़े डिजाइन करना और ज्वैलरी और ड्रेस डिजानिंग करना शुरू किया. वह अपने काम में इतनी अच्छी थीं कि उन दिनों उन्होंने कॉटेज एम्पोरियम के साथ-साथ अपने डिजाइन को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक में भेजे थे. 1948 में उन्होंने आरपी ठकराल से दूसरी शादी की और 15 मार्च, 2008 को उनका निधन हो गया. 

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