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Russia Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग जारी है. रूसी सैनिकों की ओर से लगातार बम बरसाने के साथ मिसाइलें दागी जा रही हैं. निर्दोष लोगों की मौतें हो रही हैं तो वहीं भारी संख्या में यूक्रेन (Ukraine) से लोगों का पलायन भी हुआ है. यूक्रेन में यहूदियों की बड़ी आबादी है, लेकिन पुतिन की सेना (Vladimir Putin) की ओर से जारी लगातार हमले के बाद वहां के यहूदी मुश्किल में हैं. युद्ध में वो दूसरे देशों की शरण लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं. 

यूक्रेन में रहने वाली 92 साल की यहूदी महिला इया रुड्ज़ित्सकाया (Iya Rudzitskaya) की कहानी भी दर्दनाक है. उन्हें इस उम्र में भी दूसरे देश में शरण के लिए मजबूर होना पड़ा है.

पहले हिटलर और अब पुतिन ने सताया

92 वर्षीय यूक्रेनी यहूदी इया रुड्ज़ित्सकाया, कीव से दो बार दूसरे देशों की शरण लेने के लिए मजबूर हुई हैं. पहले हिटलर की वजह से तो अब व्लादिमीर पुतिन की वजह से वो कीव छोड़ने के लिए मजबूर हुईं. सबसे पहले 1941 में, जब वह महज 10 साल की थीं और तत्कालीन यूक्रेनी सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक पर जर्मन बम गिरने लगे थे. दूसरी बार पिछले साल भी कुछ ऐसा ही वक्त आया, जब रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था.

पोलैंड की शरण लेने की मजबूरी

जंग के बीच यहूदी इया रुड्ज़ित्सकाया ने अपने बेटे आर्टूर के साथ पोलैंड की शरण ली है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में यहूदी इया रुड्ज़ित्सकाया ने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं था कि उन्हें फिर से दूसरे देश की शरण में जाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि रूसी समझते हैं कि वो अपने देश की रक्षा कर रहे हैं, लेकिन वो हमारे पास आए और खारकिव को बर्बाद कर दिया, उन्हें इसकी क्या जरूरत थी?

92 साल की यहूदी महिला का परिवार

Rudzitskaya का जन्म 1931 में एक सम्मानित यहूदी परिवार में हुआ था. उनके दादा नुचिम वैस्ब्लैट कीव में रहते थे. उनके पिता व्लादिमीर एक लेखक थे. जुलाई 1941 की शुरुआत में जब जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया, तो रुड्ज़िट्स्काया का परिवार यूक्रेन छोड़ने के लिए मजबूर हुआ. उसके पिता को ये आभास था कि यहूदी होने के नाते वो अब कीव में सुरक्षित नहीं हैं. 

पिछले साल फरवरी में जब रूस (Russia) ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो 92 साल की यहूही महिला Iya Rudzitskaya की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गईं. अपने 54 साल के बेटे के साथ पहले Moldova, फिर लिथुआनिया गए, जहां एक फ्लैट उपलब्ध कराया गया था, लेकिन आर्टूर के लिए वहां नौकरी के बहुत कम अवसर थे. बाद में किसी तरह से पोलैंड की शरण ली.

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