राहुल गांधी की यात्रा के बाद विपक्षी दल आख़िर क्यों कर रहे हैं कांग्रेस से परहेज़?
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<p style="text-align: justify;">राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का मकसद देश को एकता के सूत्र में पिरोने के साथ ही बीजेपी विरोधी तमाम ताकतों को एकजुट करना भी था लेकिन अब इसका उल्टा असर देखने को मिल रहा है. इसे यात्रा का असर कहें या फिर नाकामयाबी, लेकिन सच तो ये है कि क्षेत्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण विपक्षी पार्टियां कांग्रेस से दूरी बनाने लगी हैं. सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और बिखरा हुआ विपक्ष 2024 में क्या नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे पाएगा?</p>
<p style="text-align: justify;">बीते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मुलाकात में कांग्रेस के बगैर तीसरा मोर्चा बनाने को लेकर बातचीत हुई है और गुरुवार 23 मार्च को इसी सिलसिले में ममता बनर्जी ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी मिलने वाली हैं. बेशक ममता, अखिलेश और केसीआर से लेकर अरविंद केजरीवाल तक राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से अपरिपक्व मानते हैं लेकिन वे इस हक़ीक़त से आखिर मुंह क्यों फेर लेते हैं कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता अधूरी व बेमानी ही साबित होगी. कुछ क्षेत्रीय दल मिलकर अगर तीसरा मोर्चा बना भी लेते हैं, तो इससे कांग्रेस को भले ही कुछ नुकसान उठाना पड़े लेकिन वोटों का बंटवारा होने से आखिरकार फायदा तो बीजेपी को ही होगा.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि सियासी विश्लेषक विपक्षी एकता की सबसे बड़ी अड़चन यही मानते हैं कि वहां पीएम पद का उम्मीदवार बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाला कोई एक नहीं बल्कि कई नेता हैं और उनमें से कोई भी ये नहीं चाहता कि कांग्रेस से कोई उम्मीदवार मैदान में आए. जबकि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे साफ कर चुके हैं कि हमने कभी नहीं कहा कि इस पद के लिए पार्टी से चेहरा कौन होगा. इसका फैसला तो चुनाव के बाद होगा लेकिन उससे पहले समूचा विपक्ष एकजुट होकर साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार तो हो.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन कांग्रेस की इस पहल पर पलीता लगाने की शुरुआत तो ममता ने ही की. सागरदिघी विधानसभा सीट का उप चुनाव टीएमसी के हारने के बाद उन्होंने इसे कांग्रेस-लेफ्ट और बीजेपी का अनैतिक गठबंधन बताते हुए विपक्षी एकता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उप चुनाव का नतीजा आने के बाद ममता ने ऐलान किया था कि 2024 का लोकसभा चुनाव टीएमसी अकेले ही लड़ेगी. लेकिन अब वे तीसरा मोर्चा बनाने की झंडाबरदार बनने की भूमिका में आ गई हैं. जाहिर है कि ये स्थिति कांग्रेस के लिए किसी भी सूरत में शुभ नहीं कही जा सकती.</p>
<p style="text-align: justify;">गौरतलब है कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल की लेकर बीते दिनों विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी को पत्र लिखा था. उस पर हस्ताक्षर करने वालों में ममता और अखिलेश यादव के अलावा आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, बीआरएस से के.चंद्रशेखर राव, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, आरजेडी के तेजस्वी यादव और शिव सेना से उद्धव ठाकरे शामिल थे. ममता की कोशिश है कि ये सभी तीसरे मोर्चे के झंडे तले आ जाएं. बताया जा रहा है कि नवीन पटनायक से मुलाकात के बाद ममता इसी महीने के अंत या अप्रैल की शुरुआत में दिल्ली आकर अन्य विपक्षी नेताओं से मिलकर उन्हें तीसरे मोर्चे में शामिल होने के लिए राजी करने वाली हैं. कोशिश ये भी है कि शिरोमणि अकाली दल को भी साथ आने के लिए मनाया जाए.</p>
<p style="text-align: justify;">ममता की इसी कोशिश को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने 18 मार्च को 7 मुख्यमंत्रियों को अपने यहां डिनर पर आमंत्रित करने की योजना बनाई थी, जिसे एक दिन पहले ही कैंसिल कर दिया गया.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि 16 विपक्षी दल बीजेपी के तो खिलाफ हैं लेकिन इनमें से 13 की राहें जुदा हैं. गौतम अडानी के मुद्दे पर जेपीसी बनाने की मांग को सरकार द्वारा ठुकराने के बाद 16 दलों के सांसदों ने 15 मार्च को विरोध मार्च निकालने का ऐलान किया था. आश्चर्यजनक रूप से उस मार्च में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के सदस्य तो शामिल हुए, पर संसद के दोनों सदनों में 142 सदस्यों वाली 13 पार्टियों के सदस्यों ने खुद को इससे दूर रखा.</p>
<p style="text-align: justify;">जिन दलों ने मार्च में हिस्सा नहीं लिया, उनमें 31 सदस्यों वाली वाईएसआर कांग्रेस के अलावा 36 सदस्यों वाली टीएमसी, 11 सदस्यों वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा), नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, अन्नाद्रमुक, टीडीपी और केसी राव की पार्टी बीआरएस शामिल थीं. लेकिन शरद पवार की एनसीपी का भी इसमें हिस्सा न लेना, चौंकाने वाली बात थी. तभी से सियासी गलियारों में इन अटकलों ने जोर पकड़ लिया कि ये सब तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश में हैं. हालांकि इन सबके कांग्रेस से दूर होने की अपनी अलग-अलग वजह है.</p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल, कांग्रेस का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी को जिस तरह की स्पॉटलाइट मिली है, वह कई विपक्षी दलों को रास नहीं आई है और इसमें ममता बनर्जी व अखिलेश यादव अव्वल हैं. बहरहाल, तीसरा मोर्चा क्या इतनी आसानी से शक्ल ले पाएगा, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा. लेकिन इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि कांग्रेस समूचे विपक्ष की अगुवाई तो करना चाहती है लेकिन दूसरों के लिए कम जगह छोड़ना चाहती है, जो क्षेत्रीय दलों को मंजूर नहीं है. इसलिए कह सकते हैं कि विपक्षी एकता के लिए आपस में सौदेबाजी किए बगैर 2024 में भी मोदी को चुनौती देना महज़ सपना बनकर ही न रह जाए.</p>
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